गर्व से दमका था जो खैरात की चांदनी फैलाये
अमावसी की चादर ओढ़े वो चाँद अब शर्माता है
मेरे यार, उधारी के चिराग कब तक रोशन रहेंगे
२.
गोल, मुलायम फुल्के तेरे आज बस मेरी यादों में सही
पर तुझ बिन अब भी वैसी ही रोटियाँ सिका करती हैं
कुछ गोल, कुछ मुलायम, तो कुछ फूली फूली हुईं सी
३.
दंगों के मलबे में जो एक हुए थे मस्जिद ओ मंदिर
आओ अब उसी ढेर से एक हस्पताल बनवाया जाये
सजदे जिसके लिए किये थे, आज उसी को पाया जाये
४.
सोता हूँ कि सपनों में शायद मिल जाए कहीं तू, पर
हर लम्हा-ए-वस्ल1 पर, खुद को जागा हुआ पाया है
अब हर सुबह तेरी जगह तेरे ख्वाब उठाया करते हैं
५.
ज़िन्दगी के जिन जिन पन्नों पे तेरा जिक्र है
उन पे यादों के bookmarks लगा के रक्खे हैं
ज़रूरी सबक revise करने में आसानी रहती है
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1वस्ल = Meeting, union