कुछ दोस्तों के प्रहार से
कुछ नियति की मार से
एक आदमी और मरा है
पीठ में हो या दिल में
कहीं कोई खंजर गड़ा है
गिरकर उठकर बारम्बार
सहके वक़्त की थोड़ी मार
एक आदमी और मरा है
सांस तो चल ही रही है
इसीलिए ज़ख्म हरा है
जीवन की भेड़चाल से
या बंदूकों की नाल से
एक आदमी और मरा है
दिमाग मेरा खोया-सोया
मन वैसे ही अधमरा है
धर्मों की पोथी पढ़कर या
कर्मों का लेखा लिखकर
एक आदमी और मरा है
फूटना था अपने सर पे ये,
अपने ही पापों का घड़ा है
ख्वाबों का अम्बार लिए
कुछ दारुण पुकार लिए
एक आदमी और मरा है
शीत के अंधड़ तूफानों में
इक पीपल शायद गिरा है
Photo Courtesy: Flickr
Dedicated To: Srikant Verma’s poem Hastakshep/Magadh
waah...
ReplyDelete"पीठ में हो या दिल में
कहीं कोई खंजर गड़ा है "
u gettin better n better...:)