हाँ मंजिलों में झालरें नहीं लगायीं
लेकिन राहों के चिराग जलाये हैं हमने
जुगनू बनके उजाले फैलाते हैं पर
मकां जलाके रौशनी करने की आदत नहीं
उन सर्द रातों में साथ निभाया हैं
तेज़ बरसातों में साथ निभाया है
पतझड़ में तो खुद विदा ले लेते पर
तूफानों में हमें बिखरने की आदत नहीं
तेरे तगाफुल1 की गर्मियां क्यों चाहिए
जब तेरे स्पर्श की नरमी ही काफी थी
ज़बां पे मिसरी से पिघलते हैं पर
भट्टियों में लोहों से गलने की आदत नहीं
मैंने खूँ से ख़त नहीं लिखे थे मगर
दिल निचोड़ के वो काग़ज़ी गुलाब रंगे थे
पत्तों पे शबनम2 से फिसलते हैं पर
उफनती नदियों सी बहने की आदत नहीं
फटे होटों से भी बांटी हैं मुस्कुराहटें
महीन टुकड़ों से फिर दिल बुना है
इश्क नहीं अश्क3 थामते हैं अब पर
टीस, घाव, दर्द - दिखाने की आदत नहीं
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Photo Courtesy: Flickr and Flickr
तगाफुल: To ignore
शबनम: Dew
अश्क: Tears
dard e dil.....
ReplyDeletedard e jigar....
dil me jagaya...?:?
As always good one, gr8 choice of words...
ReplyDeleteमैंने खूँ से ख़त नहीं लिखे थे मगर
ReplyDeleteदिल निचोड़ के वो काग़ज़ी गुलाब रंगे थे
गहन ..संवेदनशील ....हृदयस्पर्शी भाव ....
शुभकामनायें .....!!