हिंद युग्म में पूर्व प्रकाशित
वो वक़्त
किस्सों भरा प्रेम ग्रन्थ नहीं गढ़ा हमने
पर उस अल्प कथा का हर वरक था
मेरी हर कॉपी के आखरी पन्ने जैसा
सच्चा, मौलिक, - अपना
ना था पूरी उम्र का साथ अपने नसीब में
पर उस ज़रा से वक़्त का हर दिन था
गर्मियों की छुट्टियों के पहले दिन जैसा
उत्साहित, उतावला, - चंचल
कहने की बात नहीं कि कहा नहीं कुछ
पर अपनी खामोशिओं का सबब था
एकांत हरे उपवन में कोयल की कूक सा
सुरमयी, मीठा, - गुंजित
चाहत, यारी, इश्क, मोहब्बत पता नहीं
पर वो रिश्ता कुछ तो ख़ास था
छन के आती धूप और सूरजमुखी सा
अतुल्य, अनकहा, - अंजान
अंजाम से तो सदा वाकिफ थे ही हम
पर अदभुत वो विदाई का क्षण था
अंतिम परीक्षा की आखरी घंटी जैसा
आज़ाद, निश्चिन्त, - अंतिम
अच्छी रचना है. धन्यवाद.
ReplyDeleteशानदार बिषय पर पर शानदार कविता लिखी है!
ReplyDeleteशुभकामनाओं सहित आपका
-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा निरंकुश
सम्पादक-प्रेसपालिका (जयपुर से प्रकाशित पाक्षिक समाचार-पत्र) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) (जो दिल्ली से देश के सत्रह राज्यों में संचालित है।
इस संगठन ने आज तक किसी गैर-सदस्य, सरकार या अन्य किसी से एक पैसा भी अनुदान ग्रहण नहीं किया है। इसमें वर्तमान में ४३५६ आजीवन रजिस्टर्ड कार्यकर्ता सेवारत हैं।)। फोन : ०१४१-२२२२२२५ (सायं : ७ से ८) मो. ०९८२८५-०२६६६
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
इस नए और सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
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