जब अँधियारा गहराता है
और चाँद कहीं सो जाता है
जब शाम का गहरा साया
हर नयी सहर1 पर छाता है
तब रौशनी का भान लिए
दूधिया फैली चांदनी सा,
कोई तो राह दिखाता है
जब सन्नाटा और ख़ामोशी
ही कान में बजती जाती है
सरगम और संगीत हो चुप
आवाज़ भी थक सी जाती है
तब ग़म को इक साज़ बनाकर
तान छेड़कर, नाद बजाकर
कोई तो सुर में गाता है
जब नज़र दूर तलक जाकर
रूआंसी सी लौट के आती है
कहती है कहीं कुछ और नहीं
चहुँ ओर फकत2 इक उदासी है
तब साँसों की आवाज़ में घुल
और सन्नाटे के शोर में मिल
कोई तो आस बंधाता है
जब वक़्त की चलती रेतघड़ी3 से
हर पल छन-छन के गिरता है
और काल का बहता दरिया भी
कुछ थम-थम कर के चलता है
तब दुःख से भारी लम्हे चुनकर
और यादों की झालर में बुनकर
कोई तो समय कटाता है
जब खुद की ही परछाई
पर की छाया हो जाती है
मुरझायी और झुकी झुकी
अपनी काया हो जाती है
तब उम्मीद का स्पर्श4 लिए
हिम्मत की डोर बांधकर
कोई तो मुझे चलाता है
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सहर – Morning
फकत – Only
रेतघड़ी – Hourglass
स्पर्श – Touch