कोई है

जब अँधियारा गहराता है
और चाँद कहीं सो जाता है 29.jpg
जब शाम का गहरा साया
हर नयी सहर1 पर छाता है
तब रौशनी का भान लिए
दूधिया फैली चांदनी सा,
कोई तो राह दिखाता है

जब सन्नाटा और ख़ामोशी
ही कान में बजती जाती है
सरगम और संगीत हो चुप
आवाज़ भी थक सी जाती है
तब ग़म को इक साज़ बनाकर
तान छेड़कर, नाद बजाकर
कोई तो सुर में गाता है

जब नज़र दूर तलक जाकर
रूआंसी सी लौट के आती है
कहती है कहीं कुछ और नहीं
चहुँ ओर फकत2 इक उदासी है
तब साँसों की आवाज़ में घुल
और सन्नाटे के शोर में मिल
कोई तो आस बंधाता है

जब वक़्त की चलती रेतघड़ी3 से
हर पल छन-छन के गिरता है 33.jpg
और काल का बहता दरिया भी
कुछ थम-थम कर के चलता है
तब दुःख से भारी लम्हे चुनकर
और यादों की झालर में बुनकर
कोई तो समय कटाता है

जब खुद की ही परछाई
पर की छाया हो जाती है
मुरझायी और झुकी झुकी 
अपनी काया हो जाती है
तब उम्मीद का स्पर्श4 लिए
हिम्मत की डोर बांधकर
कोई तो मुझे चलाता है

Photo Courtesy: Flickr and Flickr 
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सहर – Morning
फकत – Only
रेतघड़ी – Hourglass
स्पर्श – Touch

3 comments:

  1. Bahut bahut bahut khoob mitr..

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  2. jab log pareshani main pad jayen
    aur sahi aur galat ki pehchan na kar payen
    to unhe sahi raah pe lane ke liye
    koi to aap se yeh sundar kavitayen likhwata hai..

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