खुद से बहाने

Seven

शिक्षा पाने के बहाने रट ली कुछ दो चार पोथी  
तथ्य सब कंठस्थ थे पर तत्व बोध हुआ नहीं
जब भी कोई बुद्ध बोधिसत्व की बात बताएगा 
तब ज्ञान होने के स्वयं को क्या बहाने देंगे हम

 
शक्ति पाने के बहाने सदा तन ही बलिष्ठ किया 
नसें ढीली पड़ती रहीं दिल हिम्मत खोता गया
जब किसी कठोर निर्णय पे ये कदम डगमगायेंगे
तब साहस होने के स्वयं को क्या बहाने देंगे हम

उम्र भर बस अपना ही सोचा और बाकी गैर रहे
फिर भी अपने ज़मीर के खुद अपने से ही बैर रहे
जब कभी अगर आईने में खुद से रु-ब-रु आयेंगे
तब नज़र मिलाने के स्वयं को क्या बहाने देंगे हम  

कल की तैयारी के बहाने सारे आज बिता दिए
वर्ष, मास, हफ्ते की भीड़ में क्षण सारे गुमा दिए  
जब कभी ये वक़्त-पात्र रीत कर खाली हो जायेगा  
तब कौन से कल के स्वयं को कुछ बहाने देंगे हम

उत्तर ना पा पाए जिनके उन प्रश्नों को ही भुला दिया
व्यर्थ रहा जीवन जो बस बहानों में ही बिता दिया
जब जिंदगी पाने के कारण ज्ञात कभी हुए ही नहीं
तब मौत तुझे जीने के आखिर क्या बहाने देंगे हम

Photo Courtesy: Flickr

जानता नहीं हूँ

चला था जहाँ की राहों पे, उस भीड़ में, मदांध Five
तलाशने सारी खुशियाँ
बढ़ता गया बस - क्यूँ - जानता नहीं हूँ


ज़रूरत, इच्छा, लालसा और फिर बस झक
उस कबाड़ के पहाड़ में
कुछ अपना खो गया - क्या - जानता नहीं हूँ

लक्ष्य सदैव क्षितिज रहा, मरीचिका रही
ऊंचे चढ़े और आगे भागे
कभी देखूंगा पीछे - कब - जानता नहीं हूँ

सदैव आगे या पीछे ही रहे सब, कोई साथ नहीं
जीवन है या कोई दौड़
बस जीत है या हार - किस से - जानता नहीं हूँ

मेरा जीवन, मेरा दिल, मेरा मन, मेरा तन
पूछूँ खुद से खुदा से
आखिर 'मैं' हूँ 'मैं' - कौन - जानता नहीं हूँ

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