अश्क थामते हैं

 

हाँ मंजिलों में झालरें नहीं लगायीं 34.jpg
लेकिन राहों के चिराग जलाये हैं हमने
जुगनू बनके उजाले फैलाते हैं पर
मकां जलाके रौशनी करने की आदत नहीं

उन सर्द रातों में साथ निभाया हैं
तेज़ बरसातों में साथ निभाया है
पतझड़ में तो खुद विदा ले लेते पर
तूफानों में हमें बिखरने की आदत नहीं

तेरे तगाफुल1 की गर्मियां क्यों चाहिए 
जब तेरे स्पर्श की नरमी ही काफी थी
ज़बां पे मिसरी से पिघलते हैं पर
भट्टियों में लोहों से गलने की आदत नहीं 35.jpg

मैंने खूँ से ख़त नहीं लिखे थे मगर
दिल निचोड़ के वो काग़ज़ी गुलाब रंगे थे
पत्तों पे शबनम2 से फिसलते हैं पर
उफनती नदियों सी बहने की आदत नहीं

फटे होटों से भी बांटी हैं मुस्कुराहटें
महीन टुकड़ों से फिर दिल बुना है
इश्क नहीं अश्क3 थामते हैं अब पर
टीस, घाव, दर्द - दिखाने की आदत नहीं

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Photo Courtesy: Flickr and Flickr


तगाफुल: To ignore
शबनम: Dew
अश्क: Tears